Friday, January 27, 2012

फिर भी थप्पड़ को मेरे साथ जोड़ा जा रहा है

फिर भी थप्पड़ को मेरे साथ जोड़ा जा रहा है

पिछले ३० साल से मैं भ्रष्टाचारियों के खिलाफ़ लड़ रहा हूं, न मैंने किसी को थप्पड़ मारा है, न ही किसी को मारने के लिए कहा, फिर भी थप्पड़  को मेरे साथ जोड़ा जा रहा है। थप्पड़ के बारे में मेरे बयान को बगैर सोचे, न समझते हुए इस देश के बहुत बड़े अपराधी के रूप में मेरा चित्र रंगाया जा रहा है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।
मैं तो पहले भी बता चुका हूं कि गांधीजी के पैरों के पास बैठने की भी मेरी पात्रता नहीं है, गांधीजी के साथ मुझे जोड़ना ठीक नहीं। गांधीजी ने तो किसी के लिए कठोर शब्द प्रयोग करने का भी शुमार हिंसा में किया है। लेकिन मैंने कई बार देश और समाज के साथ गद्दारी करने वालों का विरोध कर कठोर शब्दों का प्रयोग किया है, जो कि मैं मानता हूं कि देश और समाज की भलाई के ही लिए किया है, हालाँकि गांधीजी के विचारों में वह भी हिंसा ही है।
एक दुर्भाग्यपूर्ण साजिश के तहत थप्पड़  के बारे में गलतफहमियाँ फैला कर मेरी बदनामी करने के प्रयास किये जा रहे हैं। यह पहली घटना नहीं है। मेरी बदनामी की कोशिशें कई बार हो चुकी हैं। लेकिन सत्य हमेशा सत्य ही होता है। इतिहास गवाह है कि सत्य को कोई झूठ नहीं साबित कर पाया। फिर भी सत्य के मार्ग पर चलने वालों को काफी तकलीफें सहनी पड़ी हैं। उनकी हमेशा निन्दा होती रही है, बुराई के साथ उन्हें संघर्ष भी करना पड़ा है, फिर हम पाते हैं कि मानव जाति के इतिहास में सत्य कभी भी पराजित नहीं हुआ। सत्य हमेशा सत्य ही रहा है। इस बात का मैंने अपने जीवन में खुद अनुभव किया है। पिछले २५ सालों से मेरी बदनामी के प्रयास होते रहे हैं। लेकिन मन्दिर में रहने वाले अण्णा पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि अण्णा अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ भी तो नहीं कर रहा है। निन्दा करने वालों को मैं बताना चाहता हूं कि थप्पड़ का सच क्या है। ‘अण्णा कहते हैं भ्रष्टाचारियों को थप्पड़ मारो।’ इसी बात को लेकर इस थप्पड़ को गांधीजी की समाधि के साथ तक जोड़ा गया…’गांधी के चोले में थप्पड़’, ‘क्यों पड़ी अण्णा को थप्पड़ की जरूरत’, वगैरह-वगैरह। इन बातों को कह कर मेरी बदनामी का चित्र रंगाया गया जो कि मैं समझता हूं कि एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है।
१६ अगस्त को रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के विरोध में हुए आन्दोलन में करोड़ों की संख्या में देश की जनता रास्ते पर उतर आई थी। मैंने बार-बार जनता से अपील की कि सभी भाई-बहनों ने, युवकों ने शान्ति के मार्ग ही से आन्दोलन करना है। कहीं पर भी हिंसा नहीं करनी है। अहिंसा में बहुत शक्ति है। अगर कहीं छुटपुट भी हिंसा हुई तो सरकार इस आन्दोलन को तोड़ देगी, कुचल देगी। इतना विशाल आन्दोलन हुआ मगर पूरा का पूरा शान्तिपूर्ण हुआ। न सिर्फ देश में बल्कि पूरी दुनिया में इस बात की चर्चा जरूर हुई कि भारत में करोड़ों लोग रास्ते पर उतर आए, पर देश भर में कहीं भी एक पत्थर भी किसी ने नहीं उठाया। इसके पीछे क्या रहस्य छिपा है?
२५ सालों से आन्दोलन चल रहे हैं, कभी भी जीवन में हिंसा का विचार नहीं आया। १६ अगस्त २०११ के इतने बड़े आन्दोलन में कभी हिंसा का विचार मन में नहीं आया। वहीं आन्दोलन के सिर्फ चार महीने बाद हिंसा करने या करवाने के विचार कैसे आ सकते हैं? इन चार महीनों के दौरान कई स्थानों पर मेरी बड़ी-बड़ी सभाएं हुईं। न मैंने कहीं हिंसा की बात रखी, न ही जनता ने भी हिंसा की है। भारतीय सेना में सेवा के दौरान १९६३ से लेकर १९७६ तक १२ वर्ष मैं पाकिस्तान जैसे देश के दुश्मन के साथ लड़ता रहा। खुद के स्वार्थ के लिए नहीं पर देश व समाज के हित के लिए मैंने २६ साल की उम्र में लड़ाई में भी हिस्सा लिया है। आज भी देश में छिपे हुए भ्रष्टाचारियों के साथ जंग जारी है, पर हिंसात्मक नहीं, अहिंसा के मार्ग से जारी है। १९७५ में पहले तो स्वामी विवेकानन्द जी और बाद में गांधीजी के विचारों का प्रभाव जीवन पर हुआ। उस कारण जीवन में कभी भी किसी के साथ हिंसात्मक लड़ाई नहीं की। २५ सालों से भ्रष्ट प्रवृत्ति के खिलाफ़ चल रही इस लड़ाई में राजनीति के कई खिलाड़ियों ने यदि मेरी हद से ज्यादा बदनामी की है, मुझे जेल में भी भिजवाया गया, तरह-तरह के दुर्व्यवहार किये गये, फिर भी मैंने कभी भी थप्पड़ मारने की भाषा नहीं की। इतने वर्षों में न मैंने किसी को थप्पड़ मारा, न ही किसी को मारने के लिए उकसाया। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ़ कानूनी लड़ाई के फलस्वरूप ६ कैबिनेट मिनिस्टर तथा ४०० से अधिक भ्रष्ट अधिकारियों को अपने घर जाना पड़ा। उस समय भी मेरे साथ उन लोगों ने भाँति-भाँति के दुर्व्यवहार किये, लेकिन उनके साथ भी थप्पड़ की भाषा मैंने कभी नहीं की। समाज और देश की भलाई के लिए कई बार मैंने आन्दोलन किये लेकिन उनमें हमेशा खुद आत्मक्लेश करना और उसकी संवेदना जनता को हो इसी प्रकार से आन्दोलन किये गये, कभी भी थप्पड़ की भाषा का प्रयोग नहीं हुआ।
आत्मक्लेश के तीन अनशन पिछले १० महीनों में किये, नतीजा यह हुआ कि महीने भर से बीमार पड़ा हूं। फिर भी मेरा हौसला कम नहीं हुआ है। पूर्णतया स्वस्थ हो जाऊं तो फिर से भ्रष्टाचारी प्रवृत्ति के विरोध में मैं देश भर में जनता को सम्बोधित करने निकल पडूंगा। उसमें थप्पड़ की बात कभी भी नहीं होगी। कुछ लोगों ने जो यह थप्पड़ का माहौल खड़ा किया है उसके पीछे असलियत क्या है यह मैं जनता को बताना चाहता हूं। वैसे मैं कभी फिल्में देखता नहीं और बीमारी के कारण महीने भर से कमरे के बाहर भी नहीं गया। हमारे कार्यकर्ता यह सन्देश ले आए कि एक फिल्म बनी है ‘गली-गली में चोर’ जो कि भ्रष्टाचार निर्मूलन के विषय पर बनाई गई है। इस फिल्म को दिखाने हेतु फिल्म के निर्माता एवं कलाकार हमारे गाँव में आ रहे हैं। मुझे फिल्म दिखाने की उनकी तीव्र इच्छा थी और चूंकि भ्रष्टाचार निर्मूलन विषय पर आधारित है इसलिए फिल्म देखने को मैं राजी हो गया। मैंने फिल्म देखी। एक परिवार पर पुलिस व राजनीति वाले मिल कर इतने अन्याय अत्याचार करते हैं कि उनका जीना दूभर हो जाता है। अत्याचार सहने की उनकी क्षमता खत्म हो जाती है। पुलिस वाले और राजनायिक विधायक मिल कर उन्हें झूठे मुकदमे में फँसा देते हैं, सताते जाते हैं, फर्जी कागज़ात बना कर उन्हें घर से बेघर करने की कोशिश करते हैं। यह ज़ुल्मों सितम इतना हद से बढ़ जाता है कि अब इसके आगे सह पाना उन्हें असम्भव हो जाता है। आखिरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ने वाला उस परिवार का मुखिया तंग आकर पुलिस वाला और विधायक दोनों के मुंह पर थप्पड़ जमा देता है और जनता को संगठित कर एक जन आन्दोलन को आरम्भ कर देता है।
फिल्म देखने के बाद मुझे फिल्म के बारे में पूछा गया तो मैंने बताया कि फिल्म अच्छी बनी है। आदमी की सहन करने की भी सीमा होती है। अन्याय अत्याचार हद से बढ़ जाए और वह सीमा लाँघ जाएं तो उस आदमी के सामने सिवा थप्पड़ मारने के क्या पर्याय रहता है? यही बात मैंने मीडिया के सामने भी कही। अण्णा हजारे ने न तो किसी को थप्पड़ मारा और न ही किसी को थप्पड़ मारने का सन्देश दिया। बस, इतना ही कहा कि जब सहन करने की क्षमता खत्म हो जाती है तो अन्याय और अत्याचार से ग्रस्त आदमी के सामने सिवा थप्पड़ मारने के कोई पर्याय नहीं बचता।
गांधीजी और स्वामी विवेकानन्द जी के विचारों से प्रेरणा पाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ाई लड़ रहा हूं। इस लड़ाई में मैंने किसी को भी थप्पड़ नहीं मारा है और न ही भविष्य में कभी मारूंगा। लेकिन यह एक मिसाल है कि कोई बदनामी करने पर उतारू हो ही जाए तो कैसे बदनामी की जाती है। न मैंने थप्पड़ मारा, न किसी को मारने के लिए उकसाया। फिल्म देख कर जैसे मुझे लगा मैंने बता दिया। उसी बात को लेकर राजनीति होने लगी और कई लोग षड़यन्त्र बनाने में जुट गये।
जाहिर है कि राजनीति से जुड़े कई लोगों ने हमारे आन्दोलन को बदनाम करने का षड़यन्त्र रचा है। टीम अण्णा के सभी सदस्यों पर आरोप प्रत्यारोप कर उन्हें बदनाम करने की कई कोशिशें हुई हैं। मेरी बदनामी के भी कई प्रयास हुए। सुना है कि राजनीति वालों ने इस काम में करोड़ों रुपये खर्च भी किये हैं। फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिली क्योंकि मैंने अपने जीवन में कहीं छोटा दाग भी नहीं लगने दिया। ऊपर बताये जैसे कोई उदाहरण मेरे साथ जोड़कर मुझे बदनाम करने की साजिश की जाती है। मेरी बदनामी करने वालों को मेरी विनती है कि मैंने क्या बोला इसका सच यदि जानना चाहते हों तो ‘ऑनलाईन प्रश्न-उत्तर’ हो जाएं। किसने किसको क्या कहा और फिल्म में जो थप्पड़ मारा गया उसकी असलियत क्या है इस पर बहस करने को मैं तैयार हूं। मुझे इस बात का भी अन्देशा है कि वे राजनायिक जो हमारे आन्दोलन को एक खतरे के रूप में देखते हैं, उन्होंने हमारी बदनामी का षड़यन्त्र रचा है। लेकिन उन लोगों ने कितने भी कोशिशें कीं तो भी हमारे आन्दोलन पर न ही इसके पूर्व में भी कोई असर हुआ है और न ही भविष्य में भी पड़ेगा।
जिस आदमी ने अपना जीवन समाज और देश के लिए अर्पण किया है, ३५ साल पूर्व अपना घर छोड़ने के बाद फिर से कभी घर नहीं लौटा, अपने भाइयों के बच्चों के नाम तक जिसको मालूम नहीं, करोड़ों रुपयों की योजनाएं पूरी कीं पर कहीं भी बैंक बैलेन्स नहीं रखा है, ऐसे आदमी पर उन राजनायिकों ने कितने भी झूठे आरोप लगाये तो भी क्या होने वाला है? ना ही जनता पर उसका कोई असर होगा। क्यों कि सच तो सच ही होता है। जो आदमी अपने जीवन में शुद्ध आचार, शुद्ध विचार, निष्कलंक जीवन, त्याग और अपमान सहने की शक्ति रखता हो, उसी के शब्दों का लोगों पर प्रभाव होता है। भ्रष्टाचार में डूबे लोगों ने कितने ही आरोप लगाये तो भी उनका असर नहीं होगा।
मेरा स्वास्थ्य सुधरने के बाद जब मैं देश भर में निकल पडूंगा तब इन भ्रष्टाचारियों की समझ में आएगा कि ऐसे आरोपों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बीमारी के कारण मैं पाँच राज्यों में नहीं जा पाया, लेकिन २०१४ में होने वाले चुनावों के पहले मैं पूरे देश भर में जाऊंगा और मतदाताओं को जगाऊंगा। भ्रष्टाचार के विरोध में जो लम्बी लड़ाई लड़नी है, उसकी तैयारी करूंगा। जनता हमारे साथ है। क्योंकि जनता के लिए भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ी समस्या है, और उसी की लड़ाई हम लड़ रहे हैं।
केन्द्र में जन लोकपाल, राज्यों में जन लोकायुक्त, ग्राम सभा को पूरे अधिकार, राईट टू रिजेक्ट जैसे कई कानून बनवाने हैं। आज गरीब किसानों की जमीनें मार पीट कर हथिया ली जाती हैं, जैसा कि कभी अंग्रेजों के जमाने में हुआ करता था। शिक्षा के क्षेत्र में भी कई सारी समस्याएं हैं, जिस वजह से गरीबों के बच्चें उच्च शिक्षा नहीं ले पाते हैं।
सही मायने में देश में प्रजातन्त्र लाना हो तो इन विषयों को लेकर लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी जो कई वर्षों तक चल सकती है। देश में प्रजातन्त्र, गणतन्त्र कायम करने के लिए एक ही रास्ता है और वह है जन आन्दोलन का। रात-दिन भ्रष्टाचार में लगे लोगों ने कितने भी आरोप लगाए तो भी ऐसे आरोपों का कोई प्रभाव नहीं होगा। ये लोग ना तो भ्रष्टाचार को मिटाएंगे, ना ही गणतन्त्र- प्रजातन्त्र को कारगर बनाने का प्रयास करेंगे। क्योंकि अगर वे ऐसा करेंगे तो उन्हें डर है कि कहीं अपने हाथों में केन्द्रित सत्ता कम न हो जाये। उन्हें तो ऐसा करने को बाध्य करना होगा और वह केवल जन आन्दोलन के माध्यम से ही सम्भव है। और इसी कारण हमारे संविधान ने जनता को आन्दोलन करने का मौलिक अधिकार दिया है। उसी अधिकार का प्रयोग कर हम सब जनता को उसके अधिकार दिलाने की भरसक कोशिश करेंगे।
कि.बा. उपनाम अण्णा हज़ारे

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